ना हो घर जहाँ ख़ुदा बसाएं क्या !!
वो कहते हैं सवारों ये रुखसार ज़रा,
टूटा है आईना हम रुख सजाएं क्या !!
वो कहते हैं सफ़र-ऐ-दास्ताँ है क्या,
खामोश हैं लफ्ज़ करें हम इज़हार क्या !!
वो कहते हैं आरजू हम सुनाएं ज़रा,
खस्ताह है ख्वाब यहाँ चाहतें हम बताएं क्या !!
वो कहते हैं निभाओ ज़रा नाता-ऐ-जहां,
नहीं जहाँ रब्त कोई रिश्ता निभाएं क्या !!
वो कहते हैं सुनाओ आज एक नज़म ज़रा,
सिहाई में छुपाते हैं ज़ज्बात हम कहें भी तो क्या !!
- नेहा सेन