Saturday, 23 November 2013

'यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे'




यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे,
मगर आज फिर तुम्हें चाहने को जी चाहता है,

यूँ तो जाने कबसे है ये दिन रात तुमसे,
मगर आज फिर मुकम्मल कुछ पल करने को जी चाहता है,

यूँ तो बसेरा है तुम्हारे मन में मेरा,
मगर आज फिर तुम्हारी आँखों में बस जाने को जी चाहता है,

यूँ तो भरोसा है जीवन भर का तुमसे,
मगर आज फिर तुम पर एतबार को जी जाता है,

यूँ तो जीना सिखा है मैंने तुमसे,
मगर आज फिर तुम पर मर मिटने को जी चाहता है,

यूँ तो मुझमे मैं भी है तुम्हारा,
मगर आज फिर तुम्हें कुछ देने को जी चाहता है,

यूँ तो लिखा कई बार है तुम्हें,
मगर आज फिर से तुम्हें कहने को जी चाहता है,

यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे,
मगर आज फिर तुम्हें चाहने को जी चाहता है !!


- नेहा सेन 

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