यूँ तो गुज़र गया है वक़्त,
कुछ तुम्हारे ही जैसे,
मगर है कुछ अभी भी,
जो गुज़रता नहीं,
खड़ा रहता है यहाँ,
मेरे साथ चलता है हर कहीं,
हाँ वही, धूल चढ़ा सा दुपट्टा,
जिसमे तुम्हारे स्वेद की बूँद,
और कुछ पल समेटे थे मैंने,
जो अब शब्द बन गए हैं,
कुछ हिसाब मांगते हैं,
कुछ तुमसे, कुछ मुझसे,
अब ये सवाल करते हैं।
- नेहा सेन 'स्नेही'