Saturday, 23 November 2013

'यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे'




यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे,
मगर आज फिर तुम्हें चाहने को जी चाहता है,

यूँ तो जाने कबसे है ये दिन रात तुमसे,
मगर आज फिर मुकम्मल कुछ पल करने को जी चाहता है,

यूँ तो बसेरा है तुम्हारे मन में मेरा,
मगर आज फिर तुम्हारी आँखों में बस जाने को जी चाहता है,

यूँ तो भरोसा है जीवन भर का तुमसे,
मगर आज फिर तुम पर एतबार को जी जाता है,

यूँ तो जीना सिखा है मैंने तुमसे,
मगर आज फिर तुम पर मर मिटने को जी चाहता है,

यूँ तो मुझमे मैं भी है तुम्हारा,
मगर आज फिर तुम्हें कुछ देने को जी चाहता है,

यूँ तो लिखा कई बार है तुम्हें,
मगर आज फिर से तुम्हें कहने को जी चाहता है,

यूँ तो जाने कबसे है मुहोब्बत तुमसे,
मगर आज फिर तुम्हें चाहने को जी चाहता है !!


- नेहा सेन 

सर्वाधिकार सुरक्षित। 

Monday, 30 September 2013

'अंतर्मन' III


दिल कहता है कह दूँ आज,
अलफ़ाज़ वो अनसुने लिख दूँ आज,
हुई नहीं जाने बातें कब से,
ख़ामोशी के साए हैं शायद जब से,
रुबुरू मगर कलम आज फिर है,
स्याही से जो कागज़ भरती है,
पढ़ कर पलकों पर मेरी,
राज़-ऐ-दिल लिखती है,
थामा है जिस गुमार को बरसों,
आज उसे बहने देती है,
कहती है ज़ख्मो को अब भरने दो,
इसी कागज़ को अब मरहम बनने दो,
और न करो इंतज़ार तुम राहगिर का,
ऐतबार उस से दावा का,
कि आ जाते हैं सूरज ढलने तक,
होते हैं जो हमसफ़र ज़िन्दगी भर तक,
नहीं आते है वो परिंदे कभी,
खुली खिड़की से जो उड जाते हैं,
और रहते नहीं ज़ख़्म भी,
वक़्त से जब मिल जाते हैं ~!!

- नेहा सेन 

Wednesday, 28 August 2013

'बेजान याद'

सुख गए हैं पत्ते भी,
आगन के उस दरख़्त के,
पल वो महकते थे,
छावं में जिसकी कभी,

इन्तिशार हैं यादें सभी,
बैठा करते थे जहाँ हम,
अक्सर वक़्त बिताने को,
पलों को बस गिनते ही,

फ़क़त हैं बेरंग पत्ते अब,
देखा है हमने भी,
बेजान किस कदर,
एहसास पड़े थे अब भी,

जला आए हैं हम,
आज उन्हें भी,
कि तड़प उनकी नहीं,
तो सुकून है हमें भी ~!!

- नेहा सेन 

Wednesday, 2 January 2013

वो कहते हैं ...




वो कहते हैं बनाओ एक मंदिर यहाँ,
ना हो घर जहाँ ख़ुदा बसाएं क्या !!

वो कहते हैं सवारों ये रुखसार ज़रा,
टूटा है आईना हम रुख सजाएं क्या !!

वो कहते हैं सफ़र-ऐ-दास्ताँ है क्या,
खामोश हैं लफ्ज़ करें हम इज़हार क्या !!

वो कहते हैं आरजू हम सुनाएं ज़रा,
खस्ताह है ख्वाब यहाँ चाहतें हम बताएं क्या !!

वो कहते हैं निभाओ ज़रा नाता-ऐ-जहां,
नहीं जहाँ रब्त कोई रिश्ता निभाएं क्या !!

वो कहते हैं सुनाओ आज एक नज़म ज़रा,
सिहाई में छुपाते हैं ज़ज्बात हम कहें भी तो क्या !!


- नेहा सेन