जलाकर दिल मुहब्बत के,
फूल हम उम्मीदों के सजाते हैं,
मगर मसरूफ इस ज़माने में,
फुर्सत नहीं उन्हें ज़माने से,
लिए ख्वाब आँखों पर,
तसवीरें हम कई सजाते हैं,
मगर ताबिंदा इस जहान में,
देखते नहीं वो दिखाने से,
ताबिंदा: bright
बैठ एहसासों के तसबुर में,
बातें हम बहुत करते हैं,
मगर शोर-गुल की महफ़िलो में,
सुनते नहीं वो बतलाने से,
कभी इन नम पलकों से,
ख़ामोशी हम बयान करते हैं,
मगर आरिफो के अंजुमन में,
समझते नहीं वो समझाने से,
आरिफ: wise
रूबरू हो फिर आईने से,
सवाल हम खुदी से करते हैं,
मगर बेजुबान इस तन्हाई में,
मिलते नहीं जवाब अनजाने से,
भीग कर बारिशों में,
महसूस हम उन्हें करते हैं,
और छुपा कर बूंदों में,
आंसूं बहा लिया करते हैं,
साथ लिए फिर शब् को हम,
खुदी में गुम हो लिया करते हैं,
और फिर सबा के संग,
मुहब्बत हम यूँ ही किया करते हैं !
- नेहा सेन
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