Wednesday, 8 August 2012

'मुहब्बत हम यूँ ही किया करते हैं'



जलाकर दिल मुहब्बत के,
फूल हम उम्मीदों के सजाते हैं,
मगर मसरूफ इस ज़माने में,
फुर्सत नहीं उन्हें ज़माने से,




लिए ख्वाब आँखों पर,
तसवीरें हम कई सजाते हैं,
मगर ताबिंदा इस जहान में,
देखते नहीं वो दिखाने से,
ताबिंदा: bright 

बैठ एहसासों के तसबुर में,
बातें हम बहुत करते हैं,
मगर शोर-गुल की महफ़िलो में,
सुनते नहीं वो बतलाने से,

कभी इन नम पलकों से,
ख़ामोशी हम बयान करते हैं,
मगर आरिफो के अंजुमन में,
समझते नहीं वो समझाने से, 
आरिफ: wise

रूबरू हो फिर आईने से,
सवाल हम खुदी से करते हैं,
मगर बेजुबान इस तन्हाई में,
मिलते नहीं जवाब अनजाने से, 




भीग कर बारिशों में,
महसूस हम उन्हें करते हैं,
और छुपा कर बूंदों में,
आंसूं बहा लिया करते हैं,

साथ लिए फिर शब् को हम,
खुदी में गुम हो लिया करते हैं,
और फिर सबा के संग,
मुहब्बत हम यूँ ही किया करते हैं 

- नेहा सेन 

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Tuesday, 17 July 2012

'अंतर्मन'



सामान है बाहर बहुत,
मगर अन्दर एक खाली कमरा है,
शोर गुल के इस मोहल्ले में,
सुनसान सा एक कोना है,
झांक कर देखा झरोखे से,
हर घर रोशन दीखता है,
मगर मेरे इस घर में,
बिजली का तार कुछ पुराना है,
है उसी सड़क पर घर मेरा भी,
जहाँ सदियों से मैखाना है,
मगर मेरे इस घर में,
तनहा मेहमान पुराना है,
है हमदम एक मेरा भी,
ख़त अक्सर लिखा करता है,
कहता है इस बार आएगा,
कि हर बार भूल जाया करता है !! 

- नेहा सेन 

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Wednesday, 27 June 2012

'मेरे मोतियों का संदूक'




मुफलिस * नहीं हूँ मैं,
बस एक बेबस सी रूह हूँ,
नहीं बैठा किसी उची बिसात पर,
मगर मखालिस * नहीं हूँ मैं,
*poor, *greedy 

दावा नहीं है मेरे पास,
मगर तेरी याद के मोती हैं,
झुक सकता हूँ मैं हाथ फ़ैलाने को,
मगर नहीं गिर सकता इतना,
कैसे ये दौलत बेच दूं मैं,

भीगना मत तू,
मेरी इस अशब की ओस में,
मुझे इस हाल में देख कर,
इस संदूक की रोशनी से पेट भर लेता हूँ,
भूखा नहीं सोता मैं,

है एक फूल गुलाब का,
मुरझाये से रंगों में पड़ा,
और हैं कुछ निशाँ,
उन चुभे काँटों के,
जिन्हें साथ रखता हूँ मैं,

हैं कुछ टुकड़े पन्नो के,
तुम्हारे नाम के लफ़्ज़ों में सजे,
और हैं कुछ सफ़ेद सफा के हिस्से,
तुम्हारे एहसास में जो अधूरे रह गए थे,
इनको ही पढता रहता हूँ मैं,


रखा है बांध कर मैंने,
कुछ लम्हों के सूखे पत्तों को,
और हैं कुछ तसवीरें,
बीते पलों को बयान करती,
बस इनको घूरा करता हूँ मैं,

सांसें छोड़ जाऊँगा मैं अपनी,
रूह से नाता कैसे तोड़ दूं,
रखूँगा महफूज़ इन्हें में जन्नत में,
खुदा से ज़िन्दगी का सौदा किया है,
कैसे तुझसे नाता तोड़ दूँ मैं.. 

- नेहा सेन 

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Friday, 22 June 2012

'जब हम ना होंगे'

कुछ होंगी यादें हमारी,
और बदलते मौसम होंगे,
उन भीगे लम्हों में,
जब हम ना होंगे,
 

होंगे कुछ कोरे कागज़,
और कुछ बिखरी तस्वीरे होंगी,
उन अनकहे लफ्जों में,
जब हम ना होंगे,

होंगे गूंजते गीत यही,
और कुछ गुमसुम धुनें होंगी,
उन बेजान ग़ज़लों में,
जब हम ना होंगे,

होंगी भीड़ ऐसी ही,
और सुनसान डगर होगी,
उन अजनबी रास्तों में,
जब हम ना होंगे,

होंगी बेजान बारिशें,
और खामोश झरोखे होंगे,
उस तनहा कमरे में,
जब हम ना होंगे,
 

होगी स्याही बहुत मगर,
खली तुम्हारी कलम होगी,
उन बेजुबान एहसासों में,
जब हम ना होंगे,

होगी बसर ज़िन्दगी यूँ ही,
और कमी एक छुपी सी होगी,
इस सफ़र-ऐ-ज़िन्दगी में,
जब हम ना होंगे !

- नेहा सेन

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Tuesday, 5 June 2012

'जाने कौन हो तुम मेरे'




जाने कौन हो तुम मेरे,
हो अजनबी चेहरा कोई,
या मेरे लिए ही तुम आये हो,
हो बूँद सा एहसास कोई,
रूह को छु जाते हो,
धुंध में छुपी परछाई सा,
धीमे से करीब आते हो,
कहते कुछ नहीं तुम,
पर बातें कई कर जाते हो,
चुपके से यूँ ही,
धुन अक्सर सुना जाते हो,
मुस्कुरा कर यूँ ही,
दूरियां फन्हा कर जाते हो,
खामोश नज़रो से यूँ ही,
हमें अपना कह जाते हो,
जाने हो परछाई ख्वाबो की,
या खुली पलकों की हकीक़त हो,
कहते कुछ नहीं तुम,
पर सवाल हज़ार छोड़ जाते हो,
जाने कौन हो तुम मेरे,
रूह से नाता निभा जाते हो ! 

- नेहा सेन 

Wednesday, 18 April 2012

'इंतज़ार करते हैं हम'




इंतज़ार करते हैं हम,
लौट आये वो पल कभी,
सहलाए थे तुमने जब,
ये एहसास कभी, 
थामा था जब तुमने,
दामन ख़्वाबों का मेरे,
और सज़ा कर पलकों पर मेरे,
यकीन मुझे दिलाया था कभी,
पिरोये थे तुमने जब,
मोती वो मुहब्बत के,
और कापते हाथों से,
पहनाया था मुझे कभी, 
थी मध्धम साँसे और,
चुपके से यूँ ही जब,
रिश्ता ये निभाया था कभी.. ! 


सर्वाधिकार सुरक्षित ! 
- नेहा सेन 

Monday, 12 March 2012

'अपने लिए तो सभी जीते हैं'


अपने लिए तो सभी जीते हैं,
दुसरो के लिए जियो तो जीवन है !!


मंदिर तो सभी जाते हैं,
कोई मन रोशन करो तो जीवन है !!

अपनी फ़िक्र तो सभी करते हैं,
उनकी मुस्कुराहटों पर जीयो तो जीवन है !! 

अपने ज़ख़्म तो सभी गिनते हैं, 
किसी का मरहम बन जाओ तो जीवन है !!

अपना घर तो सभी सजाते हैं,
किसी झोपड़ी पर छत लगाओ तो जीवन है !!

शौहरत तो सभी कमाते हैं,
थोड़ी मुहोब्बत भी कमाओ तो जीवन है !!

वक़्त तो हम रोज़ गुजारते हैं,
कुछ पलों को संजोय लें तो जीवन है !! 


- नेहा सेन 
सर्वाधिकार सुरक्षित ! 

Monday, 13 February 2012

ऐसा कोई वो खूबसूरत नज़ारा होगा..






एक बार देना आवाज़ तुम,
थाम लेना हाथ मेरा,
वो बंधन एक गहरा होगा,

दो कदम चलो तुम,
इन दूरियों को मिटाओ,
फिर हर कदम साथ होगा,

तोड़ो इन खामोशियो को,
कोई धुन अब बजने दो, 
फिर हर पल मधुर होगा,

चलो आज दिल कि सुनें,
रूह के राज़ खुलने दें,
जीवन वो एक नया होगा,

होने दो इज़हार-ऐ-इश्क आज,
इन आँखों में डूब जाने दो,
जन्नत का वो नज़ारा होगा,





छोड़ो निभाना रस्मो को,
एक बार अपना  कह दो,
हर नफ्ज़ पर नाम तुम्हारा होगा,

होगे सिर्फ तुम वहां,
महताब से जब नूर छलकेगा,
तुम ही में आसमां मेरा होगा.. 

ऐसा कोई वो खूबसूरत नज़ारा होगा.. 


- नेहा सेन 

सर्वाधिकार सुरक्षित! 

मुसाफिर हूँ यारों .....!!!: ख़्वाबों में सताना तो छोड़ दो अब...!!

मुसाफिर हूँ यारों .....!!!: ख़्वाबों में सताना तो छोड़ दो अब...!!

Saturday, 11 February 2012

अब हर मोड़ पर एक शैतान मिलता है !





अब हर मोड़ पर एक शैतान मिलता है,
अखबारों में रोज़ जिनका नाम मिलता है, 
दिलो में जिसका डर पनपता है,
अंधेरों में जिसका निशा मिलता है, 
फिर भी हर कोई अँधा बनता है,
फर्क कहाँ किसी को पड़ता है, 
हर कोई चलता बनता है,
उससे बस अपना घर दिखता है, 
अरे भाई, वहाँ भी एक रास्ता है, 
कोई शैतान वहाँ भी बसता है, 
हमें कहाँ अवसर मिलता है, 
बस हर कोई यही कहता है, 
फिर भी वो कोसा करता है, 
क्यूँ नहीं कोई कुछ करता है, 
हर मोड़ पर एक शैतान मिलता है, 




इंसानियत का जहां दम घुटता है, 
दुनिया का अब पतन दिखता है,
फिर भी कहाँ कोई हल मिलता है,
हर ज़बान पर यही सवाल मिलता है,
क्यूँ हर मोड़ पर अब शैतान मिलता है,
हर कोई कमज़ोर बनता है, 
मेरे करने से कहाँ कुछ होता है, 
खुद को आम इंसान कहता है, 
अरे भाई, बस इंसान ही तो नहीं मिलता है, 
इंसान को जो बचा सकता है, 
बस हर मोड़ पर शैतान मिलता है, 
अखबारों में जिनका नाम मिलता है !! 



- नेहा सेन 

सर्वाधिकार सुरक्षित ! 

Tuesday, 3 January 2012

ये दिल उदास बहुत है





वजह बहुत है मुस्कुराने की,
ये दिल फिर भी उदास बहुत है,

महफ़िलें बहुत है ज़माने में,
ये रूह फिर भी तन्हा बहुत है,

रंगों की कमी कहाँ कुदरत को,
ये मन फिर भी बेरंग बहुत है,

स्याही बहुत है कलम में,
ये कागज़ मगर बिखरे बहुत हैं,

कहने को बहुत कुछ है लबों पर,
ये लफ्ज़ फिर भी खामोश बहुत है, 




सामान बहुत है इस कमरे में,
हर कोना फिर भी खाली बहुत है, 

मुहब्बत तो बहुत है हमें,
गिल्ले मगर दरमियान बहुत है, 

कितना कुछ है यहाँ,
तुम बिन मगर सब अधुरा बहुत है.. 


- नेहा सेन