वजह बहुत है मुस्कुराने की,
ये दिल फिर भी उदास बहुत है,
महफ़िलें बहुत है ज़माने में,
ये रूह फिर भी तन्हा बहुत है,
रंगों की कमी कहाँ कुदरत को,
ये मन फिर भी बेरंग बहुत है,
स्याही बहुत है कलम में,
ये कागज़ मगर बिखरे बहुत हैं,
कहने को बहुत कुछ है लबों पर,
ये लफ्ज़ फिर भी खामोश बहुत है,
सामान बहुत है इस कमरे में,
हर कोना फिर भी खाली बहुत है,
मुहब्बत तो बहुत है हमें,
गिल्ले मगर दरमियान बहुत है,
कितना कुछ है यहाँ,
तुम बिन मगर सब अधुरा बहुत है..
- नेहा सेन