Friday, 22 June 2012

'जब हम ना होंगे'

कुछ होंगी यादें हमारी,
और बदलते मौसम होंगे,
उन भीगे लम्हों में,
जब हम ना होंगे,
 

होंगे कुछ कोरे कागज़,
और कुछ बिखरी तस्वीरे होंगी,
उन अनकहे लफ्जों में,
जब हम ना होंगे,

होंगे गूंजते गीत यही,
और कुछ गुमसुम धुनें होंगी,
उन बेजान ग़ज़लों में,
जब हम ना होंगे,

होंगी भीड़ ऐसी ही,
और सुनसान डगर होगी,
उन अजनबी रास्तों में,
जब हम ना होंगे,

होंगी बेजान बारिशें,
और खामोश झरोखे होंगे,
उस तनहा कमरे में,
जब हम ना होंगे,
 

होगी स्याही बहुत मगर,
खली तुम्हारी कलम होगी,
उन बेजुबान एहसासों में,
जब हम ना होंगे,

होगी बसर ज़िन्दगी यूँ ही,
और कमी एक छुपी सी होगी,
इस सफ़र-ऐ-ज़िन्दगी में,
जब हम ना होंगे !

- नेहा सेन

सर्वाधिकार सुरक्षित ! 

2 comments:

  1. आप रहे और हमेशा रहे कि किसी कि कलम को आपकी कमी ना खले ...
    सुंदर भावाभिव्यक्ति !!

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