ना हो घर जहाँ ख़ुदा बसाएं क्या !!
वो कहते हैं सवारों ये रुखसार ज़रा,
टूटा है आईना हम रुख सजाएं क्या !!
वो कहते हैं सफ़र-ऐ-दास्ताँ है क्या,
खामोश हैं लफ्ज़ करें हम इज़हार क्या !!
वो कहते हैं आरजू हम सुनाएं ज़रा,
खस्ताह है ख्वाब यहाँ चाहतें हम बताएं क्या !!
वो कहते हैं निभाओ ज़रा नाता-ऐ-जहां,
नहीं जहाँ रब्त कोई रिश्ता निभाएं क्या !!
वो कहते हैं सुनाओ आज एक नज़म ज़रा,
सिहाई में छुपाते हैं ज़ज्बात हम कहें भी तो क्या !!
- नेहा सेन
बेहतरीन रचना ! सुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने..
ReplyDeleteI can say.. you are brilliant and a wonderful person.
अच्छी रचना है नेहा....
ReplyDeleteभाव अच्छे हैं...थोडा मात्राओं /काफिया/रदीफ़ का ख़याल करो तो एक मुकम्मल ग़ज़ल बन जाए..
:-)
अनु
बहुत अच्छी कविता | बहुत सुन्दर
ReplyDeletetamasha-e-zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बधाई हो आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकशित की गई है | सूचनार्थ धन्यवाद |
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteBahut sundar rachna.
ReplyDeleteShukriyaa aap sabka! :)
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